BA Semester-2 - Home Science - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-2 - गृह विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर समूह
लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 - गृह विज्ञान

बीए सेमेस्टर-2 - गृह विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2718
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बीए सेमेस्टर-2 - गृह विज्ञान

PART - A

अध्याय - 1
परिधान एवं वस्त्र विज्ञान का परिचय

(Introduction to Clothing and Textile)

वस्त्र विज्ञान (Textile) एक ऐसा विकसित होता हुआ विज्ञान है जिसके अन्तर्गत हम वस्त्रों तथा इससे सम्बन्धित अनेक सामग्रियों का अध्ययन करते हैं। हम हर समय किसी न किसी प्रकार के वस्त्रों का प्रयोग करते हैं। वस्त्रों को पहनने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे:- पहाड़ों पर शरीर को गर्म रखने हेतु, व्यवसाय में काम से सम्बद्ध संकटों से बचाव हेतु, शरीर को आकर्षक बनाने हेतु, अपनी आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति को प्रदर्शित करने हेतु इत्यादि। कुछ व्यक्ति वस्त्रों का प्रयोग अपने अभिनिर्धारण (Idenitification) के लिये, करते हैं जैसे- पुलिसमैन, पोस्टमैन सन्यासी, पादरी या महंत आदि अपने अनुकूल, अभिनिर्धारण के लिये वस्त्र पहनते हैं, जिससे आप दूर से ही पहचानकर बता सकते हैं कि अमुक व्यक्ति फलां व्यक्ति है तथा उसका पेशा क्या होगा, यह भी आप अपने अनुभव और उसके परिधान को देखकर बता सकते हैं।

अपने दैनिक कार्यक्रम में व्यक्ति को अनेक प्रकार के वस्त्रों की आवश्यकता होती है। कुछ वस्त्र तो वह स्वयं शरीर की रक्षा और तन ढकने के लिये प्रयोग करता है। नहाने, पहनने व रात को सोने के वस्त्र अलग-अलग होते हैं। शरीर पोंछने के लिये तौलिया का प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त घर की सज्जा व सजावट के लिये पर्दे, सोफे, कुशन व कालीन के लिये भी वस्त्रों की आवश्यकता होती है। कुशन, सोफे, पर्दे आदि के कपड़ों व कवर्स से आपके ड्राइंग रूम (Drawing Room) की सजावट व कलात्मकता में वृद्धि तो होती ही है, साथ ही साथ यह वस्तुएँ टिकाऊ व अत्यधिक समय तक उपयोगिता प्रदान करने वाली भी होती हैं। ड्राइंग रूम से लेकर रसोईघर, स्नानागार, अन्य कमरों आदि में भी विभिन्न प्रकार के वस्त्र प्रयुक्त होते हैं।

अभिप्राय यह है कि मानव-जीवन वस्त्र से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध है। मानव को किसी भी दशा में वस्त्र और वस्त्र को किसी भी दशा में मानव से पृथक नहीं किया जा सकता। बिना वस्त्र के मानव सभ्यता का विकास सम्भव नहीं है। यही कारण है कि आज वस्त्र विज्ञान सबसे विकसित होता हुआ महत्वपूर्ण विज्ञान है।

आज की छात्राएँ ही कल की गृहिणी होंगी। अतः गृह विज्ञान से सम्बन्धित वस्त्र विज्ञान का अध्ययन करना उनके लिए नितान्त आवश्यक है। इसका ज्ञान होने से छात्राएँ वस्त्रों की खरीदारी, प्रयोग, सफाई, देख-रेख व संरक्षण में कुशल हो सकती हैं।

रमरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य

• परिधान के सामान्य सिद्धान्त हैं- कपड़ों का उचित चयन, उचित माप, उपयुक्त व सुविधाजनक कटिंग, अच्छी परिसज्जा परिधान में समायोजन इत्यादि ।
• परिधान के सही माप की आवश्यकता समय की बचत, ग्राहक को पूर्ण सन्तुष्टि, तथा अच्छी कटिंग प्रदान करने हेतु होती है।
• मशीनों के आविष्कार ने वस्त्र निर्माण के कार्यों को गति प्रदान की है।.
बीसवीं सदी में विभिन्न क्षेत्रों, जैसे- कला एवं विज्ञान के साथ ही साथ वस्त्र विज्ञान के क्षेत्र में भी काफी प्रगति हुई।
• भारत में प्राचीन समय से ही सुन्दर वस्त्रों का निर्माण होता रहा है। इसका वर्णन पुराणों में भी प्राप्त होता है।
आजकल भारत में लगभग 23-24 तरह का कपास उगाया जाता है।
• वर्तमान में 60% हथकरघों पर सूती वस्त्र ही बुने जा रहे हैं।
• सूत हथकरघा उद्योग की रीढ़ है।
• गुड़, फुल्ली गुड़, फाइन, फाइन सुपर आदि कोटियों में कपास को बाँटा जाता है। बालाचूरी साड़ियां बनाने के लिये जामदानी के करघों का उपयोग किया जाता है।
• रेशा या तन्तु वस्त्र निर्माण की आधारभूत इकाई है जिसमें वस्त्र निर्माण में उपयोग होने वाले रेशों या तन्तुओं को उनके विविध स्रोतों में एकत्र किया जाता है।
• रेशे की संरचना को दो भागों में विभाजित करते हैं - (1) बाह्य संरचना, (2) आन्तरिक संरचना ।
• लम्बाई की दृष्टि से तन्तु तीन प्रकार के होते हैं - (1) फिलामेण्ट या तन्तु, (2) छोटे रेशे तथा (3) रेशों की रस्सी ।
• मानव-निर्मित तन्तु बिना ओरिएण्टेड अवस्था में होते हैं, क्योंकि यह स्पीनरेट से निकाले गये होते हैं।
• पेड़-पौधों के बीजकोशों से कपास (रुई) प्राप्त होता है।
• पेड़ों की छाल से लिनन व जूट प्राप्त होता है।
• वस्त्र मानव के शरीर को सूर्य के प्रकाश से अंवरोधित करता है।
• लिनन शीघ्रता से जल को अवशोषित कर शीघ्र ही उत्सर्जित कर देता है। इसलिए रूमाल लिनन के कपड़ों का बनाया जाता है।
• मनुष्य द्वारा निर्मित प्रथम रेशा 'रेयॉन' था।
• रेयॉन की खोज 1884 ई. में प्रोफेसर जॉर्ज एडमर्स ने की थी।
• रेशम की खोज सर्वप्रथम चीन में की गई थी।
• यूनान में कपास को सिन्धु नदी घाटी में पैदा होने के कारण 'सिण्डन' नाम दिया गया। भारत को कपास का जन्मदाता कहा जाता है।
• लिनन से सर्वप्रथम वस्त्र मिस्र में बनाये गये।
• कपास की प्रथम जीन संवर्द्धित किस्म बी.टी. काटन. है।
• U.S.A. कपास का सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
• ऊन का निर्माण कियटिन नामक प्रोटीन से होता है।
• रेशम की जंगली किस्म का वानस्पतिक नाम 'एन्टपीरिया मायलिट्टा' है।
• सबसे अधिक प्राकृतिक रेशा रेशम का होता है।
• रेयॉन नामक रेशे से बने रेशम को 'कृत्रिम रेशम' कहा जाता है।
• नायलॉन की खोज डॉ. डब्ल्यू. एच. केरोथर्स ने की थी।
मूँगा रेशम के कीट ओक के वृक्ष पर पलते हैं।
• रेशम प्राप्त करने के लिये कीट को क्रियाशील स्थिति में मार दिया जाता है।
• वस्त्र निर्माण की पहली प्रक्रिया रेशों अथवा तन्तुओं की कताई होती है।
• बुनाई के दौरान लम्बाई की दिशा वाले तन्तुओं को 'ताने का सूत्र' कहते हैं।
• बुनाई के दौरान चौड़ाई की दिशा वाले तन्तुओं को 'बाने का सूत्र' कहा जाता है।
• नीटेड वस्त्र अकेले धागे से बनाये जाते हैं।
• सादी बुनाई वाले वस्त्र दोनों तरफ से एक जैसे दिखाई देते हैं।
• साटिन बुनाई रेशमी वस्त्रों की होती है।
• लिनो बुनाई पद्धति हल्के व जालीदार वस्त्रों के निर्माण हेतु उपयुक्त है ।
• भारत में हड़प्पा व मोहनजोदड़ो नामक सिन्धु घाटी के सभ्यता-स्थलों पर सूती वस्त्र के अवशेष प्राप्त हुए है।
• तीव्र क्षार से प्राणिज रेशे नष्ट हो जाते हैं।
• तनु अम्ल के घोल वनस्पतिज रेशों को प्राणिज रेशों से पृथक् करने के काम में आते हैं।
• प्रथम क्षारीय रंग 'कोलतार' को कहा जाता था।
• कृत्रिम रंग की खोज 1856 ई. में विलियम हेनरी पारकर ने की थी जोकि कोलतार था ।
• बांधकर रंगाई करने की विधि राजस्थान की वस्त्र रंगाई की प्रमुख विशेषता है।
• स्टैन्सिल छपाई की शुरूआत जापान में हुई थी ।
• परिसज्जा से रहित वस्त्रों को 'ग्रे गुड्स' कहा जाता है।

...पीछे | आगे....

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. अध्याय - 1 परिधान एवं वस्त्र विज्ञान का परिचय
  2. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  3. उत्तरमाला
  4. अध्याय - 2 तन्तु
  5. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  6. उत्तरमाला
  7. अध्याय - 3 सूत (धागा) का निर्माण
  8. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  9. उत्तरमाला
  10. अध्याय - 4 तन्तु निर्माण की विधियाँ
  11. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  12. उत्तरमाला
  13. अध्याय - 5 वस्त्र निर्माण
  14. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  15. उत्तरमाला
  16. अध्याय - 6 गृह प्रबन्धन का परिचय
  17. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  18. उत्तरमाला
  19. अध्याय - 7 संसाधन, निर्णयन प्रक्रिया एवं परिवार जीवन चक्र
  20. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  21. उत्तरमाला
  22. अध्याय - 8 समय प्रबन्धन
  23. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  24. उत्तरमाला
  25. अध्याय - 9 शक्ति प्रबन्धन
  26. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  27. उत्तरमाला
  28. अध्याय - 10 धन प्रबन्धन : आय, व्यय, पूरक आय, पारिवारिक बजट एवं बचतें
  29. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  30. उत्तरमाला
  31. अध्याय - 11 कार्य सरलीकरण एवं घरेलू उपकरण
  32. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  33. उत्तरमाला

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book